लछिमा
दूर, बहुत दूर,
पहाड़ी के पीछे
आबाद, बमुश्किल दस-बारह
घरों वाले गाँव में रहती है
दुबली-पतली सदानीरा नदी के किनारे।
रात, बाकी रहते ही उठती है,
घर भर के लिए रखकर रोटी-पानी,
वह जल्दी ही अपनी हड़ियल गायों
और उदास चूल्हे की यादों के साथ,
उबड़-खाबड़ पथरीले रास्तों से लड़ते हुए,
दिन डूबने के साथ,
थकी उम्मीदें लिए हुए,
लौटती है गोठ में,
अपने वजन के दोगुने बोझ के साथ।
गाँव के पास बहने वाली नदी से,
उसका नाता है बहुत पुराना ।
जब से ब्याह कर आई है,
खिमुली बुआ के लिए,
लछिमा,
उनके बचपन के खिलौनों में शामिल,
सुंदर बालों और गुलाबी होठों वाली -
गुड़िया थी।
उदासी के समय,
अक्सर वह नदी के पास आती है,
न जाने,
क्या-क्या बातें करती है वह नदी के साथ
नदी उसे लगती है अपनी-सी,
ठीक गाँव की सदानीरा की तरह ही,
उसकी जिंदगी में भी,
अगले मोड़ की शक्ल तय नहीं है,
वह भी बह रही है,
अनगिन सालों से।